कृत्रिम बुद्धिमत्ता (AI) का जलवायु पर प्रभाव

 कृत्रिम बुद्धिमत्ता (AI) का जलवायु पर प्रभाव

कृत्रिम बुद्धिमत्ता (AI) आज के समय में दुनिया भर में बदलाव ला रही है। यह तकनीक न केवल मानव जीवन को आसान बना रही है, बल्कि इसके पर्यावरणीय प्रभाव भी बढ़ रहे हैं। बड़े डेटा सेंटर, AI मॉडल्स को प्रशिक्षित करने की ऊर्जा खपत और प्लास्टिक के उपयोग जैसे पहलुओं ने जलवायु परिवर्तन पर गंभीर प्रभाव डाला है। इस ब्लॉग में हम समझेंगे कि AI के विकास और इसके उपयोग से जलवायु पर क्या असर पड़ रहा है और इसके नकारात्मक प्रभावों को कैसे नियंत्रित किया जा सकता है।

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AI के उपयोग से जलवायु पर प्रभाव

  1. AI के लिए डेटा सेंटर की ऊर्जा खपत
    AI सिस्टम को चलाने के लिए बड़ी मात्रा में डेटा की आवश्यकता होती है, और इन डेटा को स्टोर करने के लिए विशाल डेटा सेंटर की जरूरत होती है। इन डेटा सेंटरों के संचालन में अत्यधिक ऊर्जा का उपयोग होता है। उदाहरण के लिए, एक अनुमान के मुताबिक, Google या Amazon जैसे बड़े क्लाउड सर्विस प्रोवाइडर्स के डेटा सेंटर 1 गीगावॉट (1,000 मेगावॉट) से अधिक बिजली की खपत कर सकते हैं, जो एक छोटे शहर की कुल ऊर्जा खपत के बराबर हो सकता है।
    इस ऊर्जा को बनाने के लिए भारी मात्रा में कोयला जलाया जाता है, जिससे CO2 उत्सर्जन होता है और जलवायु परिवर्तन में योगदान मिलता है।

    उदाहरण:
    यदि एक साधारण Google Search करने में 0.3 ग्राम CO2 उत्सर्जित होता है, तो लाखों लोग हर दिन सर्च करते हैं, जिससे विशाल CO2 उत्सर्जन होता है।

  2. कृत्रिम बुद्धिमत्ता और जलवायु पर पानी का प्रभाव
    AI मॉडल्स को चलाने और डेटा सेंटर को ठंडा करने के लिए पानी की भी बड़ी खपत होती है। इन डेटा सेंटरों को ठंडा करने के लिए बहुत सारा पानी इस्तेमाल किया जाता है, खासकर उन क्षेत्रों में जहां जलवायु गर्म है। पानी का यह अत्यधिक उपयोग जलवायु संकट को और बढ़ाता है, क्योंकि पानी की कमी वाली जगहों पर यह एक अतिरिक्त बोझ बन सकता है।

    उदाहरण:
    एक अनुमान के अनुसार, एक डेटा सेंटर को चलाने के लिए प्रति वर्ष लाखों गैलन पानी की खपत हो सकती है। अगर इस पानी का इस्तेमाल जलवायु संकट वाले क्षेत्र में किया जाता है, तो यह पानी की कमी को और बढ़ा सकता है।

  3. AI के लिए प्लास्टिक का उपयोग
    AI मॉडल्स को बनाने और डेटा सेंटर को स्थापित करने में प्लास्टिक का भी उपयोग होता है। इनमें से अधिकांश प्लास्टिक कंप्यूटर हार्डवेयर, वायरिंग और अन्य तकनीकी उपकरणों में होता है। हर साल लाखों टन प्लास्टिक का उपयोग किया जाता है, जो पर्यावरण में जमा होकर प्रदूषण बढ़ाता है। प्लास्टिक का नष्ट होना भी जलवायु परिवर्तन में योगदान देता है क्योंकि यह डीकंपोज होने में कई दशकों तक का समय लेता है।

    उदाहरण:
    एक अध्ययन के अनुसार, एक सामान्य डेटा सेंटर के निर्माण में हजारों किलो प्लास्टिक का इस्तेमाल होता है। इन उपकरणों का निपटान ठीक से नहीं होने पर प्लास्टिक कचरा जलवायु पर नकारात्मक असर डालता है।

  4. जलवायु परिवर्तन के लिए AI और कार्बन उत्सर्जन
    AI की मदद से हम पर्यावरण पर निगरानी और सुधार के उपायों का निर्धारण कर सकते हैं, लेकिन इन मॉडलों को चलाने और प्रशिक्षित करने में उच्च मात्रा में बिजली और कोयला जलाया जाता है, जिससे सीधा असर जलवायु पर पड़ता है। AI द्वारा किए गए कार्यों को बिजली की मदद से संचालित किया जाता है, और यदि यह बिजली नवीकरणीय ऊर्जा से नहीं आती है, तो यह CO2 उत्सर्जन का कारण बनती है।

    उदाहरण:
    अगर हम बात करें केवल एक AI मॉडल की प्रशिक्षण प्रक्रिया की, तो इस प्रक्रिया के दौरान 284 टन CO2 का उत्सर्जन हो सकता है, जो एक औसत अमेरिकी कार के 34 सालों तक चलने के बराबर होता है।

निष्कर्ष:
कृत्रिम बुद्धिमत्ता, जलवायु परिवर्तन के समाधान में मददगार हो सकती है, लेकिन इसके संचालन के लिए आवश्यक ऊर्जा, पानी और अन्य संसाधनों का अत्यधिक उपयोग जलवायु संकट को बढ़ा सकता है। इसे नियंत्रित करने के लिए, AI विकास के दौरान नवीकरणीय ऊर्जा का उपयोग, पानी की खपत को कम करना, और प्लास्टिक के उपयोग को नियंत्रित करना आवश्यक है। हमें इसे जिम्मेदारी से अपनाना चाहिए ताकि यह हमारे ग्रह पर लंबे समय तक सकारात्मक प्रभाव डाल सके।

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